श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 54-56h
 
 
श्लोक  13.19.54-56h 
श्रुत्वा जनन्या वचनं निराशो गुरुदर्शने॥ ५४॥
नियतात्मा महादेवमपश्यं सोऽब्रवीच्च माम्।
पिता माता च ते त्वं च पुत्र मृत्युविवर्जिता:॥ ५५॥
भविष्यथ विश क्षिप्रं द्रष्टासि पितरं क्षये।
 
 
अनुवाद
माँ की बात सुनकर मैं पिता के दर्शन पाने की आशा से विरक्त हो गया। मैंने मन पर नियंत्रण किया और महादेवजी का पूजन करके उनके दर्शन किए। उस समय उन्होंने मुझसे कहा, 'पुत्र! तुम्हारे पिता, माता और तुम, तीनों मृत्यु से मुक्त हो जाएँगे। अब तुम शीघ्र ही अपने घर में प्रवेश करो। वहाँ तुम्हें अपने पिता के दर्शन होंगे।'
 
On hearing my mother's words, I despaired of seeing my father. I controlled my mind and after worshipping Mahadevji, I saw him. At that time, he said to me, 'Son! Your father, mother and you, all three will be free from death. Now you should quickly enter your house. There you will get to see your father.'
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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