श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 51-52h
 
 
श्लोक  13.19.51-52h 
एवमुक्त्वा तु भगवान‍् वरेण्यो वृषवाहन:।
महेश्वरो महाराज कृत्तिवासा महाद्युति:॥ ५१॥
सगणो दैवतश्रेष्ठस्तत्रैवान्तरधीयत।
 
 
अनुवाद
महाराज! ऐसा कहकर कृत्तिवास भगवान महेश्वर, महान तेज वाले, वृषभवाहन के वाहन और सब वर्णों में श्रेष्ठ, अपने गणों सहित वहाँ अन्तर्धान हो गए॥51 1/2॥
 
Maharaj! Having said this, Lord Maheshwar, the Krittivasa, the one with great effulgence, the vehicle of Vrishabhavahana and the best of all the colors, disappeared there along with his entourage. 51 1/2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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