श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  13.19.5 
चारुशीर्षस्तत: प्राह शक्रस्य दयित: सखा।
आलम्बायन इत्येवं विश्रुत: करुणात्मक:॥ ५॥
 
 
अनुवाद
तत्पश्चात् इन्द्र के प्रिय मित्र आलंबगोत्री चारुशीर्ष ने, जो आलंबायन नाम से प्रसिद्ध हैं और अत्यन्त दयालु हैं, इस प्रकार कहा - 5॥
 
Thereafter, Indra's dear friend Charushirsha of Aalambagotri, who is famous by the name Aalambayan and is very kind, said thus - 5॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.