श्री महाभारत » पर्व 13: अनुशासन पर्व » अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान् शिवजीकी महिमाका वर्णन » श्लोक 43-46h |
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| | श्लोक 13.19.43-46h  | सावर्णस्य मनो: सर्गे सप्तर्षिश्च भविष्यति।
वेदानां च स वै वक्ता कुरुवंशकरस्तथा॥ ४३॥
इतिहासस्य कर्ता च पुत्रस्ते जगतो हित:।
भविष्यति महेन्द्रस्य दयित: स महामुनि:॥ ४४॥
अजरश्चामरश्चैव पराशर सुतस्तव।
एवमुक्त्वा स भगवांस्तत्रैवान्तरधीयत॥ ४५॥
युधिष्ठिर महायोगी वीर्यवानक्षयोऽव्यय:। | | | अनुवाद | सावर्णिक मन्वन्तर में जो सृष्टि होगी, उसमें आपका यह पुत्र सप्तर्षि के पद पर प्रतिष्ठित होगा और इस वैवस्वत मन्वन्तर में वेदों का वक्ता, कौरव वंश का प्रवर्तक, इतिहास का रचयिता, जगत का हितैषी तथा देवराज इन्द्र का परमप्रिय महामुनि होगा। पराशर! आपका वह पुत्र सदैव अमर रहेगा।' युधिष्ठिर! ऐसा कहकर महायोगी, पराक्रमी, अविनाशी एवं निर्भय भगवान शिव वहाँ अन्तर्धान हो गये। | | In the creation that will take place during the Savarnik Manvantar, this son of yours will be established on the post of Saptarishi and in this Vaivasvat Manvantar, he will be the speaker of the Vedas, the originator of the Kaurava dynasty, the creator of history, the well-wisher of the world and the most beloved great sage of Devraj Indra. Parashar! That son of yours will always remain immortal.' Yudhishthir! Saying this, the great yogi, powerful, indestructible and fearless Lord Shiva disappeared there. |
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