श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 38-39
 
 
श्लोक  13.19.38-39 
गर्ग उवाच
चतु:षष्ट्यङ्गमददत् कलाज्ञानं ममाद्भुतम्।
सरस्वत्यास्तटे तुष्टो मनोयज्ञेन पाण्डव॥ ३८॥
तुल्यं मम सहस्रं तु सुतानां ब्रह्मवादिनाम्।
आयुश्चैव सपुत्रस्य संवत्सरशतायुतम्॥ ३९॥
 
 
अनुवाद
गर्ग बोले- हे पाण्डुपुत्र! मैंने सरस्वती के तट पर मानस यज्ञ करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। इससे प्रसन्न होकर उन्होंने मुझे चौंसठ कलाओं का अद्भुत ज्ञान दिया। उन्होंने मुझे मेरे समान एक हजार ब्रह्मवादी पुत्र दिए तथा मेरे पुत्रों सहित मेरी आयु दस लाख वर्ष निश्चित की।
 
Garg said- O son of Pandu! I had satisfied Lord Shiva by performing Manas Yajna on the banks of Saraswati. Pleased with this, he gave me the wonderful knowledge of sixty-four arts. He gave me a thousand Brahmavadi sons like me and fixed my lifespan of ten lakh years along with my sons.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.