श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 35-36
 
 
श्लोक  13.19.35-36 
तत: प्रणम्य शिरसा इदं वचनमब्रुवम्।
यदि प्रीतो महादेवो भक्त्या परमया प्रभु:॥ ३५॥
नित्यकालं तवेशान भक्तिर्भवतु मे स्थिरा।
एवमस्त्विति भगवांस्तत्रोक्त्वान्तरधीयत॥ ३६॥
 
 
अनुवाद
"यह सुनकर मैंने सिर झुकाकर प्रणाम किया और कहा - 'यदि भगवान महादेव मेरी परम भक्ति से प्रसन्न हैं, तो ईशान! आपके प्रति मेरी यह अविचल भक्तिभाव सदैव बनी रहे।' तब 'एवमस्तु' कहकर भगवान शिव वहाँ अन्तर्धान हो गए।" 35-36॥
 
"Hearing this, I bowed my head and bowed and said - 'If Lord Mahadev is pleased with my supreme devotion, then Ishaan! May my constant devotion towards you remain constant.' Then saying 'Evamastu', Lord Shiva disappeared there." 35-36॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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