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श्लोक 13.19.35-36  |
तत: प्रणम्य शिरसा इदं वचनमब्रुवम्।
यदि प्रीतो महादेवो भक्त्या परमया प्रभु:॥ ३५॥
नित्यकालं तवेशान भक्तिर्भवतु मे स्थिरा।
एवमस्त्विति भगवांस्तत्रोक्त्वान्तरधीयत॥ ३६॥ |
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अनुवाद |
"यह सुनकर मैंने सिर झुकाकर प्रणाम किया और कहा - 'यदि भगवान महादेव मेरी परम भक्ति से प्रसन्न हैं, तो ईशान! आपके प्रति मेरी यह अविचल भक्तिभाव सदैव बनी रहे।' तब 'एवमस्तु' कहकर भगवान शिव वहाँ अन्तर्धान हो गए।" 35-36॥ |
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"Hearing this, I bowed my head and bowed and said - 'If Lord Mahadev is pleased with my supreme devotion, then Ishaan! May my constant devotion towards you remain constant.' Then saying 'Evamastu', Lord Shiva disappeared there." 35-36॥ |
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