श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  13.19.34 
ततो मां भगवान‍् प्रीत इदं वचनमब्रवीत्।
वरं वृणीष्व भद्रं ते यस्ते मनसि वर्तते॥ ३४॥
 
 
अनुवाद
इससे प्रसन्न होकर भगवान ने मुझसे कहा, 'कृष्ण! तुम्हारा कल्याण हो। अपनी इच्छानुसार कोई भी वर माँग लो।'
 
“Pleased with this, the Lord said to me, 'Krishna! May you be blessed. Ask for any boon according to your liking.'
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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