श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 32-33
 
 
श्लोक  13.19.32-33 
एवं सहस्रशश्चान्यान् महादेवो वरं ददौ॥ ३२॥
मणिमन्थेऽथ शैले वै पुरा सम्पूजितो मया।
वर्षायुतसहस्राणां सहस्रं शतमेव च॥ ३३॥
 
 
अनुवाद
"इस प्रकार महादेवजी ने मुझे अन्य हजारों वरदान दिए। पूर्वकाल में अन्य अवतारों के समय मैंने मणिमंत पर्वत पर लाखों-करोड़ों वर्षों तक भगवान शंकर की आराधना की थी।
 
“In this way Mahadevji gave me thousands of other boons. In the past, during other incarnations, I had worshipped Lord Shankar on Manimanth mountain for millions and crores of years.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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