श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 31-32h
 
 
श्लोक  13.19.31-32h 
ततोऽथ भगवानाह प्रीतो मां वै युधिष्ठिर।
अर्थात् प्रियतर: कृष्ण मत्प्रसादाद् भविष्यसि॥ ३१॥
अपराजितश्च युद्धेषु तेजश्चैवानलोपमम्।
 
 
अनुवाद
"युधिष्ठिर! तब भगवान शिव ने प्रसन्नतापूर्वक मुझसे कहा - 'श्रीकृष्ण! मेरी कृपा से तुम अन्य किसी भी वस्तु से अधिक प्रिय होगे। युद्ध में तुम्हारी कभी पराजय नहीं होगी और तुम अग्नि के समान अदम्य तेज को प्राप्त करोगे।'" 31 1/2॥
 
"Yudhishthir! Then Lord Shiva said to me happily - 'Shri Krishna! By my grace you will be more dear than any other thing. You will never be defeated in battle and you will attain the indomitable brightness like fire.'” 31 1/2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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