श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  13.19.30 
वासुदेवस्तदोवाच पुनर्मतिमतां वर:।
सुवर्णाक्षो महादेवस्तपसा तोषितो मया॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
उस समय बुद्धिमानों में श्रेष्ठ भगवान श्रीकृष्ण पुनः इस प्रकार बोले - 'मैंने स्वर्ण के समान नेत्रों वाले भगवान महादेव को अपनी तपस्या से संतुष्ट किया।
 
At that time, Lord Krishna, the best of all intelligent people, spoke again thus - “I satisfied Lord Mahadeva, who has eyes like gold, with my penance.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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