श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  13.19.3 
लब्धवानीप्सितान् कामानहं वै पाण्डुनन्दन।
तथा त्वमपि शर्वाद्धि सर्वान् कामानवाप्स्यसि॥ ३॥
 
 
अनुवाद
पाण्डु नंदन! इसे पढ़कर मैंने अपनी सभी मनोकामनाएँ प्राप्त कर ली हैं। उसी प्रकार आप भी शंकर जी से अपनी सभी मनोकामनाएँ प्राप्त करेंगे।॥3॥
 
Pandu Nandan! By reading this I have achieved all my desired desires. In the same way you too will get all your desires from Shankar Ji.'॥ 3॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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