श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  13.19.29 
अचिन्त्य एष भगवान‍् कर्मणा मनसा गिरा।
न मे तात युधिश्रेष्ठ विद्यया पण्डित: सम:॥ २९॥
 
 
अनुवाद
"तात! रणभूमि के श्रेष्ठ योद्धा! ये अचिन्त्य भगवान शिव मन, वाणी और कर्म से पूजनीय हैं। इनकी पूजा का ही फल है कि आज पाण्डित्य में मेरी बराबरी करने वाला कोई नहीं है।" 29॥
 
"Tat! The best warrior of the battlefield! This unimaginable Lord Shiva is worthy of worship through mind, speech and action. The result of his worship is that today there is no one who can equal me in erudition." 29॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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