श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  13.19.27 
अजरश्चामरश्चैव भविता दु:खवर्जित:।
साम्यं ममास्तु ते सौख्यं युवयोर्वर्धतां क्रतु:॥ २७॥
 
 
अनुवाद
‘मुनि! तुम अमर हो जाओगे और शोक से मुक्त हो जाओगे। तुम मेरी समानता को प्राप्त हो जाओ और तुम दोनों का, यजमान और पुरोहित का यह यज्ञ सदैव बढ़ता रहे।’॥27॥
 
‘Muni! You will become immortal and free from sorrow. May you attain my likeness and may this yajna of you two, the yajman and the priest, continue to grow forever.’॥ 27॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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