श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  13.19.11 
जामदग्न्यश्च कौन्तेयमिदं धर्मभृतां वर:।
ऋषिमध्ये स्थित: प्राह ज्वलन्निव दिवाकर:॥ ११॥
 
 
अनुवाद
तत्पश्चात्, पुण्यात्माओं में श्रेष्ठ जमदग्निपुत्र परशुरामजी ऋषियों के बीच में खड़े होकर तथा सूर्य के समान चमकते हुए, कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर से इस प्रकार बोले -॥11॥
 
Thereafter, Jamadagni's son Parashurama, the best among the virtuous, standing in the midst of the sages and shining like the Sun, spoke to Kunti's son Yudhishthira in this manner -॥ 11॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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