श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  13.19.1 
वैशम्पायन उवाच
महायोगी तत: प्राह कृष्णद्वैपायनो मुनि:।
पठस्व पुत्र भद्रं ते प्रीयतां ते महेश्वर:॥ १॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायनजी कहते हैं - हे जनमेजय! तत्पश्चात् महायोगी श्रीकृष्ण द्वैपायन मुनिवर व्यासजी ने युधिष्ठिर से कहा - 'पुत्र! तुम्हारा कल्याण हो। तुम भी इस स्तोत्र का पाठ करो, जिससे महेश्वर तुम पर भी प्रसन्न हों।॥1॥
 
Vaishampayana says- O Janamejaya! Thereafter the great Yogi Shri Krishna Dwaipayana Munivar Vyas said to Yudhishthira- 'Son! May you be blessed. You too recite this stotra, so that Maheshwara may be pleased with you too.॥ 1॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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