श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 188: भीष्मके अन्त्येष्टि-संस्कारकी सामग्री लेकर युधिष्ठिर आदिका उनके पास जाना और भीष्मका श्रीकृष्ण आदिसे देहत्यागकी अनुमति लेते हुए धृतराष्ट्र और युधिष्ठिरको कर्तव्यका उपदेश देना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  13.188.24 
वैशम्पायन उवाच
एवमुक्तस्तु गाङ्गेय: कुन्तीपुत्रेण धीमता।
ददर्श भारतान् सर्वान् स्थितान् सम्परिवार्य ह॥ २४॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय! कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर की यह बात सुनकर गंगापुत्र परम बुद्धिमान भीष्मजी ने नेत्र खोलकर देखा कि सारा भरतवंश उन्हें चारों ओर से घेरे खड़ा है। 24॥
 
Vaishampayanji says – Janamejaya! Hearing this from Kunti's son Yudhishthira, the most intelligent son of Ganga, Bhishmaji opened his eyes and saw the entire Bharata dynasty standing around him from all sides. 24॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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