श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 181: श्रीकृष्णद्वारा भगवान‍् शङ्करके माहात्म्यका वर्णन  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  13.181.7 
न चैवोत्सहते स्थातुं कश्चिदग्रे महात्मन:।
न हि भूतं समं तेन त्रिषु लोकेषु विद्यते॥ ७॥
 
 
अनुवाद
उन महान् आत्मा शंकर के समक्ष कोई भी खड़ा होने का साहस नहीं कर सकता। तीनों लोकों में कोई भी ऐसा प्राणी नहीं है जो उनकी बराबरी कर सके ॥7॥
 
No one can dare to stand before that great soul Shankar. There is no being in the three worlds who can equal him. ॥ 7॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.