श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 181: श्रीकृष्णद्वारा भगवान‍् शङ्करके माहात्म्यका वर्णन  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  13.181.43 
एकधा च द्विधा चैव बहुधा च स एव हि।
शतधा सहस्रधा चैव तथा शतसहस्रधा॥ ४३॥
 
 
अनुवाद
उसके एक, दो, अनेक, सौ, हजार और लाखों रूप हैं। 43.
 
He has one, two, many, hundred, thousand and lakhs of forms. 43.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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