श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 181: श्रीकृष्णद्वारा भगवान‍् शङ्करके माहात्म्यका वर्णन  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  13.181.4 
प्रयत: प्रातरुत्थाय यदधीये विशाम्पते।
प्राञ्जलि: शतरुद्रीयं तन्मे निगदत: शृणु॥ ४॥
 
 
अनुवाद
प्रजानाथ! मैं तुम्हें शतरुद्रिय के विषय में बता रहा हूँ, जिसका मैं प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर मन और इन्द्रियों को वश में रखकर हाथ जोड़कर जप करता हूँ; सुनो।
 
Prajanath! I am telling you about the Shatarudriya which I recite and chant every morning after getting up and keeping the mind and senses under control with folded hands; listen.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.