श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 168: वंशपरम्पराका कथन और भगवान‍् श्रीकृष्णके माहात्म्यका वर्णन  »  श्लोक 18-19
 
 
श्लोक  13.168.18-19 
योगमाय: सहस्राक्षो निरपायो महामना:।
वीरो मित्रजनश्लाघी ज्ञातिबन्धुजनप्रिय:॥ १८॥
क्षमावांश्चानहंवादी ब्रह्मण्यो ब्रह्मनायक:।
भयहर्ता भयार्तानां मित्राणां नन्दिवर्धन:॥ १९॥
 
 
अनुवाद
वह योगमाया से युक्त है और उसके हजारों नेत्र हैं। उसका हृदय विशाल है। वह अविनाशी, वीर, मित्रों द्वारा प्रशंसित, मित्रों और बन्धु-बान्धवों का प्रिय, क्षमाशील, अहंकाररहित, ब्राह्मणों का भक्त, वेदों का रक्षक, भयभीत लोगों का भय दूर करने वाला और मित्रों का सुख बढ़ाने वाला है। 18-19॥
 
He is full of Yogamaya and has thousands of eyes. His heart is huge. He is indestructible, brave, admired by his friends, beloved by his friends and relatives, forgiving, egoless, a devotee of Brahmins, the one who saves the Vedas, the one who removes the fear of fearful people and increases the happiness of his friends. 18-19॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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