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श्लोक 13.163.d41-d42  |
मृतं वा यदि वा नष्टं योऽतीतमनुशोचति।
संतापेन च युज्येत तच्चास्य न निवर्तते॥
उत्पन्नमिह मानुष्ये गर्भप्रभृति मानवम्।
विविधान्युपवर्तन्ते दु:खानि च सुखानि च॥ |
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अनुवाद |
जो व्यक्ति किसी मृत व्यक्ति या खोई हुई वस्तु के लिए शोक करता है, वह दुःख का ही भागी होता है। उसका दुःख कभी समाप्त नहीं होता। मनुष्य योनि में जन्म लेने वाला व्यक्ति गर्भाधान के समय से ही अनेक प्रकार के दुःख-सुख भोगता है। |
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He who mourns for a dead person or a lost object is only a part of sorrow. His sorrow never ends. A person born in the human form experiences various kinds of sorrows and happiness from the time of conception. |
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