श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 67
 
 
श्लोक  13.15.67 
तमहं प्राञ्जलिर्भूत्वा मृगपक्षिष्वथाग्निषु।
धर्मे च शिष्यवर्गे च समपृच्छमनामयम्॥ ६७॥
 
 
अनुवाद
फिर मैंने हाथ जोड़कर हिरणों, पक्षियों, अग्निहोत्र, धार्मिक अनुष्ठानों और आश्रम के शिष्यों की कुशलक्षेम पूछी।
 
Then, with folded hands I inquired about the well-being of the deer, birds, Agnihotra, religious practices and disciples of the ashram.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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