श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 422
 
 
श्लोक  13.15.422 
यस्त्वां ध्रुवं वेदयते गुहाशयं
प्रभुं पुराणं पुरुषं च विग्रहम्।
हिरण्मयं बुद्धिमतां परां गतिं
स बुद्धिमान् बुद्धिमतीत्य तिष्ठति॥ ४२२॥
 
 
अनुवाद
जो अपने हृदयगुहा में स्थित आत्मारूपी प्रभु, पुराणपुरुष, परब्रह्म के स्वरूप, मृगरूपी पुरुष और बुद्धिमानों की परम गतिरूप आपको निश्चयपूर्वक जानता है, वही बुद्धिमान पुरुष सांसारिक बुद्धि से परे होकर भगवत्भाव में स्थित हो जाता है ॥422॥
 
The one who knows you with certainty in the form of the soul present in the cavity of his heart, the Lord, the Purana Purusha, the embodiment of Parabrahma, the deer-like man and the ultimate movement of the intelligent ones, only that intelligent person gets established in the divine feeling by transcending the worldly intelligence. 422॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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