श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 402
 
 
श्लोक  13.15.402 
विद्याधरा दानवाश्च गुह्यका राक्षसास्तथा।
सर्वाणि चैव भूतानि स्थावराणि चराणि च।
नमस्यन्ति महाराज वाङ्मन:कर्मभिर्विभुम्॥ ४०२॥
 
 
अनुवाद
महाराज! विद्याधर, दानव, गुह्यक, राक्षस तथा सभी प्राणी मन, वाणी तथा कर्म से भगवान शिव को नमस्कार करते थे। 402॥
 
Maharaj! Vidyadhar, demons, Guhyakas, Rakshasas and all living beings used to salute Lord Shiva through mind, speech and actions. 402॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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