श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 384
 
 
श्लोक  13.15.384 
तत्र स्थितश्च भगवान‍् देव्या सह महाद्युति:।
तपसा तेजसा कान्त्या दीप्तया सह भार्यया॥ ३८४॥
 
 
अनुवाद
उस नील कांतिके भीतर तप, तेज और कांतिसे युक्त परम तेजस्वी भगवान शिवजी और उनकी तेजस्वी पत्नी उमादेवी विराजमान थे ॥384॥
 
Within that blue radiance, the most brilliant Lord Shiva was seated with penance, brilliance, radiance and his radiant wife Umadevi. 384॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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