श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 361
 
 
श्लोक  13.15.361 
भविष्यति द्विजश्रेष्ठ मयि भक्तिश्च शाश्वती।
सांनिध्यं चाश्रमे नित्यं करिष्यामि द्विजोत्तम॥ ३६१॥
 
 
अनुवाद
द्विजश्रेष्ठ! मैं सदैव आपमें और द्विजप्रवर में अटूट भक्ति रखूँगा! मैं सदैव आपके इस आश्रम के निकट अदृश्य रूप से निवास करूँगा ॥361॥
 
Dwijshreshtha! I will always have unwavering devotion for you and Dwijapravara! I will always reside invisible near this ashram of yours. 361॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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