श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 354
 
 
श्लोक  13.15.354 
क्षीरोदनं च भुञ्जीयामक्षयं सह बान्धवै:।
आश्रमे च सदास्माकं सांनिध्यं परमस्तु ते॥ ३५४॥
 
 
अनुवाद
मैं अपने मित्रों और संबंधियों के साथ सदैव दूध-भात का नित्य भोजन करता रहूँ तथा आप हमारे इस आश्रम में सदैव मेरे निकट निवास करें।'
 
May I, along with my friends and relatives, always have the eternal meal of rice and milk and may you always reside near me in this ashram of ours.'
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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