श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 325
 
 
श्लोक  13.15.325 
क्षीरोद: सागराणां च शैलानां हिमवान् गिरि:।
वर्णानां ब्राह्मणश्चासि विप्राणां दीक्षितो द्विज:॥ ३२५॥
 
 
अनुवाद
आप समुद्रों में क्षीरसागर, पर्वतों में हिमालय, जातियों में ब्राह्मण और ब्राह्मणों में दीक्षित ब्राह्मण (यज्ञ में दीक्षा लेने वाले) हैं। ॥325॥
 
You are the Kshirsagar among the oceans, the Himalayas among the mountains, a Brahmin among the castes and among the Brahmins, a initiated Brahmin (one who takes initiation in the yagya). ॥ 325॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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