श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 247-248h
 
 
श्लोक  13.15.247-248h 
तेजसा तु तदा व्याप्तं दुर्निरीक्ष्यं समन्तत:॥ २४७॥
पुनरुद्विग्नहृदय: किमेतदिति चिन्तयम्।
 
 
अनुवाद
वह अपने तेज से सब ओर व्याप्त था, अतः उसकी ओर देखना कठिन हो रहा था। तब मैं चिन्ताग्रस्त हो गया और पुनः सोचने लगा कि यह क्या है?॥247 1/2॥
 
He was pervading all sides with his radiance, so it was difficult to look at him. Then I became anxious and again started thinking what is this?॥ 247 1/2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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