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श्लोक 13.15.247-248h  |
तेजसा तु तदा व्याप्तं दुर्निरीक्ष्यं समन्तत:॥ २४७॥
पुनरुद्विग्नहृदय: किमेतदिति चिन्तयम्। |
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अनुवाद |
वह अपने तेज से सब ओर व्याप्त था, अतः उसकी ओर देखना कठिन हो रहा था। तब मैं चिन्ताग्रस्त हो गया और पुनः सोचने लगा कि यह क्या है?॥247 1/2॥ |
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He was pervading all sides with his radiance, so it was difficult to look at him. Then I became anxious and again started thinking what is this?॥ 247 1/2॥ |
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