श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 241
 
 
श्लोक  13.15.241 
वज्रसारमयै: शृङ्गैर्निष्टप्तकनकप्रभै:।
सुतीक्ष्णैर्मृदुरक्ताग्रैरुत्किरन्तमिवावनिम्॥ २४१॥
 
 
अनुवाद
उसके सींग वज्र के सार से बने हुए प्रतीत होते थे। उनमें तपाए हुए सोने के समान चमक थी। उन सींगों के अग्रभाग अत्यंत तीखे, कोमल और लाल रंग के थे। ऐसा प्रतीत होता था मानो वह उन सींगों से पृथ्वी को भेद देगा ॥241॥
 
His horns looked as if they were made of the essence of thunderbolt. They radiated a glow like that of heated gold. The front parts of those horns were very sharp, soft and red in colour. It seemed as if he would pierce the earth with those horns.॥241॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.