श्री महाभारत » पर्व 13: अनुशासन पर्व » अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन » श्लोक 229 |
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| | श्लोक 13.15.229  | प्रत्यक्षं ननु ते सुरेश विदितं
संयोगलिङ्गोद्भवं
त्रैलोक्यं सविकारनिर्गुण गणं
ब्रह्मादिरेतोद्भवम्।
यद्ब्रह्मेन्द्रहुताशविष्णुसहिता
देवाश्च दैत्येश्वरा
नान्यत् कामसहस्रकल्पितधिय:
शंसन्ति ईशात् परम्॥
तं देवं सचराचरस्य जगतो
व्याख्यातवेद्योत्तमं
कामार्थीवरयामि संयतमना
मोक्षाय सद्य: शिवम्॥ २२९॥ | | | अनुवाद | सुरेश्वर! आप प्रत्यक्षतः जानते हैं कि ब्रह्मा आदि प्रजापतियों की इच्छा से उत्पन्न हुआ, योनि और लिंग से प्रकट हुआ, हजारों कामनाओं से युक्त बुद्धि वाला, बद्ध और मुक्त प्राणियों से युक्त यह त्रिभुवन ब्रह्मा, इन्द्र, अग्नि और विष्णु सहित समस्त देवता और दानव महादेवजी से बढ़कर किसी अन्य देवता का वर्णन नहीं करते। मैं अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए, सम्पूर्ण चराचर जगत के लिए वेदों में ज्ञात सर्वोत्तम जानने योग्य तत्त्व, उन मंगलमय परमेश्वर भगवान शंकर को वरण करता हूँ और संयमित मन से उनसे मोक्ष की प्रार्थना भी करता हूँ॥229॥ | | Sureshwar! You are directly aware that this Tribhuvan consisting of bound and free living beings, born from the will of Prajapatis like Brahma, has manifested from the vagina and linga, and the one with the intellect full of thousands of desires and all the gods and demons including Brahma, Indra, Agni and Vishnu do not tell of any other god greater than Mahadevji. I choose Lord Shankar, the auspicious God who is the best knowable element known in the Vedas for the entire living world, for the fulfillment of my wishes and with a balanced mind, I also pray to him for salvation. 229॥ |
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