श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 227
 
 
श्लोक  13.15.227 
प्रत्यक्षमिह देवेन्द्र पश्य लिङ्गं भगाङ्कितम्।
देवदेवेन रुद्रेण सृष्टिसंहारहेतुना॥ २२७॥
 
 
अनुवाद
देवेन्द्र! तुम यहाँ सृष्टि और संहार के कारण भगवान रुद्र के मस्तक से अंकित लिंगमूर्ति को देखो। यह उनके कारणस्वरूप का द्योतक है॥ 227॥
 
Devendra! You should see here the Lingamurti (image) marked with the forehead of the Lord Rudra, who is the cause of creation and destruction. It is indicative of His causal form.॥ 227॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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