श्री महाभारत » पर्व 13: अनुशासन पर्व » अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन » श्लोक 21 |
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| | श्लोक 13.15.21  | ध्रुवाय नन्दिने होत्रे गोप्त्रे विश्वसृजेऽग्नये।
महाभाग्यं विभोर्ब्रूहि मुण्डिनेऽथ कपर्दिने॥ २१॥ | | | अनुवाद | भगवान शंकर के महान सौभाग्य का वर्णन कीजिए, जो ध्रुव (कूटस्थ), नंदी (आनंदमय), होता, गोप्त (रक्षक), जगत् के रचयिता, गार्हपत्य आदि अग्नि, मुण्डी (बिना बाणों वाले) और कपर्दी (जूटयुक्त) हैं। | | Please describe the great good fortune of Lord Shankar who is Dhruv (Kutastha), Nandi (Blissful), Hota, Gopta (Protector), Creator of the World, Garhapatya etc. Agni, Mundi (Without bangs) and Kapardi (With jute). |
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