श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 208-209
 
 
श्लोक  13.15.208-209 
किं चात्र बहुभि: सूक्तैर्हेतुवादै: पुरंदर।
सहस्रनयनं दृष्ट्वा त्वामेव सुरसत्तम॥ २०८॥
पूजितं सिद्धगन्धर्वैर्देवैश्च ऋषिभिस्तथा।
देवदेवप्रसादेन तत् सर्वं कुशिकोत्तम॥ २०९॥
 
 
अनुवाद
श्रेष्ठ पुरन्दर! कौशिकवंशावतारों इन्द्र! यहाँ अनेक ज्ञानमयी बातें कहने से क्या लाभ? आप सहस्रों नेत्रों से सुशोभित हैं और सिद्ध, गन्धर्व, देवता और ऋषिगण आपको देखकर जो आदर करते हैं, वह सब देवाधिदेव महादेव की कृपा से ही संभव हुआ है। 208-209॥
 
Best Purandar! Kaushikvanshavatans Indra! What is the benefit of reciting many wise sayings here? You are adorned with thousands of eyes and the respect shown by Siddhas, Gandharvas, gods and sages after seeing you, all this has become possible only due to the blessings of Devadhidev Mahadev. 208-209॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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