श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 198
 
 
श्लोक  13.15.198 
हेतुवादैर्विनिर्मुक्तं सांख्ययोगार्थदं परम्।
यमुपासन्ति तत्त्वज्ञा वरं तस्माद् वृणीमहे॥ १९८॥
 
 
अनुवाद
जो बुद्धिवाद से दूर हैं, जो अपने भक्तों को सांख्य और योग का परम प्रयोजन (दुःखों से परम मुक्ति तथा ब्रह्म-प्राप्ति) प्रदान करते हैं, जिनको बुद्धिमान् पुरुष सदैव पूजते हैं, उन महादेव जी की हम प्रार्थना करते हैं॥198॥
 
We pray to that Mahadev Ji who is far away from rationalism, who provides the ultimate purpose of Sankhya and Yoga (extreme relief from suffering and realization of Brahma) to his devotees, whom the wise men always worship. 198॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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