|
|
|
श्लोक 13.15.192  |
शक्र उवाच
क: पुनर्भवने हेतुरीशे कारणकारणे।
येन शर्वादृतेऽन्यस्मात् प्रसादं नाभिकाङ्क्षसि॥ १९२॥ |
|
|
अनुवाद |
इन्द्र ने पूछा- ब्रह्मन्! जगदीश्वर शिव के अस्तित्व का क्या कारण है, जिसके कारण आप शिव के अतिरिक्त अन्य किसी देवता का आशीर्वाद स्वीकार नहीं करना चाहते? 192॥ |
|
Indra asked – Brahman! What is the reason for the existence of Jagdishwar Shiva, due to which you do not want to accept the blessings of any god other than Shiva? 192॥ |
|
✨ ai-generated |
|
|