श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 183
 
 
श्लोक  13.15.183 
अलमन्याभिस्तेषां
कथाभिरप्यन्यधर्मयुक्ताभि:।
येषां न क्षणमपि रुचितो
हरचरणस्मरणविच्छेद: ॥ १८३॥
 
 
अनुवाद
जो लोग भगवान शिव के चरणों के स्मरण से क्षण भर के लिए भी वियोग नहीं चाहते, उनके लिए अन्य धर्मों से संबंधित सब कथाएँ व्यर्थ हैं। 183.
 
For those who do not like the separation from the remembrance of the feet of Lord Shiva even for a moment, all the other stories related to other religions are useless. 183.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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