श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 178
 
 
श्लोक  13.15.178 
नाहं त्वत्तो वरं काङ्क्षे नान्यस्मादपि दैवतात्।
महादेवादृते सौम्य सत्यमेतद् ब्रवीमि ते॥ १७८॥
 
 
अनुवाद
सौम्य! मैं महादेवजी के अतिरिक्त आपसे या किसी अन्य देवता से वर नहीं लेना चाहता। मैं यह सत्य कहता हूँ। (178)
 
‘Soumya! I do not want to take a boon from you or any other god except Mahadevji. I am saying this truthfully. 178.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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