श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 172
 
 
श्लोक  13.15.172 
शक्ररूपं स कृत्वा तु सर्वैर्देवगणैर्वृत:।
सहस्राक्षस्तदा भूत्वा वज्रपाणिर्महायशा:॥ १७२॥
 
 
अनुवाद
वे समस्त देवताओं से घिरे हुए इन्द्र के रूप में वहाँ पहुँचे। उस समय उनके सहस्त्र नेत्र चमक रहे थे। उस परम यशस्वी इन्द्र के हाथ में वज्र चमक रहा था। 172.
 
He arrived in the form of Indra surrounded by all the gods. At that time his thousand eyes were shining. The thunderbolt was shining in the hand of that highly successful Indra. 172.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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