श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 168
 
 
श्लोक  13.15.168 
ततोऽहं तप आस्थाय तोषयामास शङ्करम्।
एकं वर्षसहस्रं तु वामाङ्गुष्ठाग्रविष्ठित:॥ १६८॥
 
 
अनुवाद
तत्पश्चात् मैंने भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और एक हजार वर्षों तक केवल अपने बाएं पैर के अंगूठे के आधार पर खड़ा रहा। (168)
 
Thereafter I pleased Lord Shiva by resorting to penance. I stood for a thousand years only on the tip of the toe of my left foot. 168.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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