श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 155
 
 
श्लोक  13.15.155 
भूधरो नागमौञ्जी च नागकुण्डलकुण्डली।
नागयज्ञोपवीती च नागचर्मोत्तरच्छद:॥ १५५॥
 
 
अनुवाद
वे पृथ्वी को धारण करने वाले शेषनाग के रूप में हैं। वे सर्प की करधनी धारण करते हैं। उनके कानों में सर्पों के कुण्डल हैं। वे सर्पों का जनेऊ धारण करते हैं और सर्पचर्म की धोती पहनते हैं ॥155॥
 
He is in the form of Sheshnag, the bearer of the earth. He wears a girdle of a snake. He has earrings made of snakes. He wears the sacred thread made of snakes and wears a dhoti (sheet) made of snake skin. ॥155॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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