श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 121-123h
 
 
श्लोक  13.15.121-123h 
नेदं क्षीरोदनं मातर्यत् त्वं मे दत्तवत्यसि।
ततो मामब्रवीन्माता दु:खशोकसमन्विता॥ १२१॥
पुत्रस्नेहात् परिष्वज्य मूर्ध्नि चाघ्राय माधव।
कुत: क्षीरोदनं वत्स मुनीनां भावितात्मनाम्॥ १२२॥
वने निवसतां नित्यं कन्दमूलफलाशिनाम्।
 
 
अनुवाद
माता! आपने मुझे जो दिया है, वह दूध-भात नहीं है।’ माधव! तब शोक और शोक में डूबी हुई मेरी माता ने पुत्र-प्रेमवश मुझे हृदय से लगाकर मेरा सिर सूँघकर मुझसे कहा - ‘बेटा! जो शुद्ध हृदय वाले ऋषिगण सदैव वन में रहते हैं और कंद-मूल तथा फल खाकर निर्वाह करते हैं, उन्हें दूध-भात कैसे मिल सकता है?॥121-122 1/2॥
 
Mother! What you have given me is not rice and milk.' Madhava! Then my mother, immersed in grief and sorrow, hugging me to her heart out of love for her son, smelling my head, said to me - 'Son! How can those sages with pure hearts, who always live in the forests and survive by eating roots, tubers and fruits, get rice and milk?॥ 121-122 1/2॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.