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श्लोक 13.15.108-109h  |
मयापि च यथा दृष्टो देवदेव: पुरा विभो॥ १०८॥
साक्षात् पशुपतिस्तात तच्चापि शृणु माधव। |
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अनुवाद |
हे प्रभु! तात माधव! पूर्वकाल में मैंने किस प्रकार देवाधिदेव पशुपति का साक्षात् दर्शन किया था, उसकी कथा सुनिए। 108 1/2॥ |
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Lord! Tat Madhav! Listen to the story of how I had personally seen Devadhidev Pashupati in the past. 108 1/2॥ |
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