श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 100
 
 
श्लोक  13.15.100 
शाकल्य: संशितात्मा वै नववर्षशतान्यपि।
आराधयामास भवं मनोयज्ञेन केशव॥ १००॥
 
 
अनुवाद
केशव! शाकल्य ऋषि के मन में सदैव संशय रहता था। उन्होंने मनोमय यज्ञ द्वारा नौ सौ वर्षों तक भगवान शिव की आराधना की। 100॥
 
Keshav! There was always doubt in the mind of Shakalya Rishi. He worshiped Lord Shiva for nine hundred years through Manomaya Yagya (meditation). 100॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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