श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 15: भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन  »  श्लोक 10-11
 
 
श्लोक  13.15.10-11 
रुद्रभक्त्या तु कृष्णेन जगद् व्याप्तं महात्मना।
तं प्रसाद्य तदा देवं बदर्यां किल भारत॥ १०॥
अर्थात् प्रियतरत्वं च सर्वलोकेषु वै तदा।
प्राप्तवानेव राजेन्द्र सुवर्णाक्षान्महेश्वरात्॥ ११॥
 
 
अनुवाद
भरतनन्दन! रुद्रदेव के प्रति भक्ति के कारण ही महात्मा श्रीकृष्ण ने सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त किया है। राजन! कहते हैं कि प्राचीन काल में बदरिकाश्रम में महादेवजी को प्रसन्न करके महेश्वर के उस दिव्य दर्शन से श्रीकृष्ण ने सब वस्तुओं से भी अधिक प्रिय भाव को प्राप्त किया; अर्थात् वे समस्त लोगों के प्रिय हो गए। 10-11॥
 
Bharatnandan! It is because of devotion towards Rudradev that Mahatma Shri Krishna has spread the entire world. Rajan! It is said that in ancient times, by pleasing Mahadevji in Badarika Ashram, Shri Krishna attained a feeling more precious than all things from that divine vision of Maheshwar; That is, he became the beloved of all the people. 10-11॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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