श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 148: ब्राह्मणादि वर्णोंकी प्राप्तिमें मनुष्यके शुभाशुभ कर्मोंकी प्रधानताका प्रतिपादन  »  श्लोक 13-14
 
 
श्लोक  13.148.13-14 
क्षत्रियो वा महाभागे वैश्यो वा धर्मचारिणि।
स्वानि कर्माण्यपाहाय शूद्रकर्म निषेवते॥ १३॥
स्वस्थानात् स परिभ्रष्टो वर्णसंकरतां गत:।
ब्राह्मण: क्षत्रियो वैश्य: शूद्रत्वं याति तादृश:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
महाभागे! धर्मचारिणी! यदि कोई क्षत्रिय या वैश्य अपने कर्म छोड़कर शूद्र का कर्म करने लगे, तो वह अपनी जाति से भ्रष्ट होकर वर्णसंकर हो जाता है और अगले जन्म में शूद्र योनि में जन्म लेता है। ऐसा व्यक्ति चाहे ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो या वैश्य, वह शूद्रभाव को प्राप्त होता है। 13-14॥
 
Mahabhage! Dharmacharini! If a Kshatriya or a Vaishya leaves his duties and starts working as a Shudra, then he gets corrupted from his caste and becomes a mixed caste and is born in the form of a Shudra in the next birth. No matter whether such a person is a Brahmin, Kshatriya or Vaishya, he attains Shudrabhava. 13-14॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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