श्री महाभारत » पर्व 13: अनुशासन पर्व » अध्याय 143: पाँच प्रकारके दानोंका वर्णन » श्लोक 4 |
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| | श्लोक 13.143.4  | भीष्म उवाच
शृणु तत्त्वेन कौन्तेय दानं प्रति ममानघ।
यथा दानं प्रदातव्यं सर्ववर्णेषु भारत॥ ४॥ | | | अनुवाद | भीष्म बोले, "अबोध कुन्तीपुत्र! भरतपुत्र! मैं तुमसे दान के विषय में जो कुछ कहता हूँ, उसे सत्यतापूर्वक सुनो। मैं तुम्हें यह बता रहा हूँ कि सभी जातियों के लोगों को किस प्रकार दान देना चाहिए।" ॥4॥ | | Bhishma said, "Innocent son of Kunti! Son of Bharat! Listen to what I tell you in truth about charity. I am telling you how people of all castes should give charity." ॥ 4॥ |
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