श्री महाभारत » पर्व 13: अनुशासन पर्व » अध्याय 130: श्राद्धके विषयमें देवदूत और पितरोंका, पापोंसे छूटनेके विषयमें महर्षि विद्युत्प्रभ और इन्द्रका, धर्मके विषयमें इन्द्र और बृहस्पतिका तथा वृषोत्सर्ग आदिके विषयमें देवताओं, ऋषियों और पितरोंका संवाद » श्लोक 64-65h |
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| | श्लोक 13.130.64-65h  | वर्षाणि षडशीतिं तु दुर्वृत्ता: कुलपांसना:।
स्त्रिय: सर्वाश्च दुर्वृत्ता: प्रतिमेहन्ति या रविम्॥ ६४॥
अनिलद्वेषिण: शक्र गर्भस्था च्यवते प्रजा। | | | अनुवाद | इन्द्र! जो दुष्ट और बुरे स्वभाव वाले पुरुष तथा दुष्ट स्त्रियाँ सूर्य की ओर मुख करके मूत्र त्याग करती हैं, तथा जो वायु से द्वेष रखते हैं, अर्थात् वायु की ओर मुख करके मूत्र त्याग करते हैं, वे सभी छियासी वर्ष तक गर्भस्थ शिशु को खो देते हैं। | | Indra! All those wicked and bad-natured men and all those wicked women who urinate facing the Sun, and those who hate the wind, that is, who urinate facing the wind, all of them lose the child in their womb for eighty-six years. 64 1/2. |
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