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श्लोक 13.121.32  |
एतत् फलमहिंसाया भूयश्च कुरुपुंगव।
न हि शक्या गुणा वक्तुमपि वर्षशतैरपि॥ ३२॥ |
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अनुवाद |
कुरुश्रेष्ठ! यही अहिंसा का फल है। इतना ही नहीं, अहिंसा का फल तो इससे भी बढ़कर है। अहिंसा के लाभों का वर्णन सौ वर्षों में भी नहीं किया जा सकता। |
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Best of the Kurus! This is the fruit of non-violence. Not just this, non-violence has even greater fruit than this. The benefits of non-violence cannot be described even in a hundred years. |
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इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि अहिंसाफलकथने षोडशाधिकशततमोऽध्याय:॥ ११६॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गत दानधर्म पर्वमें अहिंसाके फलका वर्णनविषयक एक सौ सोलहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ११६॥
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