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श्लोक 13.121.30  |
सर्वयज्ञेषु वा दानं सर्वतीर्थेषु वाऽऽप्लुतम्।
सर्वदानफलं वापि नैतत्तुल्यमहिंसया॥ ३०॥ |
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अनुवाद |
समस्त यज्ञों में किया गया दान, समस्त तीर्थों में लिया गया स्नान और समस्त दानों का फल - ये सब मिलकर भी अहिंसा के समान नहीं हो सकते ॥30॥ |
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The donations made in all the yagyas, the dip taken in all the holy places and the fruits of all the donations - even all these put together cannot equal non-violence. ॥ 30॥ |
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